Wednesday 8 May 2013

THE OLD BUDDHA (563-483) and THE NEW BUDDHA (1891-1956)


            THE OLD BUDDHA AND THE NEW BUDDHA
                                             सिद्धार्थ गौतम महाकारुणिक बुद्ध ( B.C. 563 -  483 )
                                                                           और
                                             डॉ  भीमराव आंबेडकर महामैत्रैय बुद्ध ( 1891 - 1956 )

सिद्धार्थ गौतम बुद्ध, जिन्होंने भारत में BC 438 से लेकर BC 483 याने पुरे 45 वर्षो तक भारत भर पैदल घूमकर  प्रज्ञा और करुणा द्वारे प्रचार और प्रसार किया उसे धम्म कहते है। उन्होंने कहा था मेरे धम्म का आधार प्रज्ञा और करूणा है। यही वो कारण है आगे चलकर धम्म का विभाजन हुआ। जिन्होंने करूणा का पक्ष लिया वे हिनयानी या स्थविर वादी कहने लगे। और जिन्होंने प्रज्ञा का पक्ष लिया वे महायानी कहने लगे। और आज तक करूणा बड़ी की प्रज्ञा बड़ी, यह विवाद कोई भी बौद्ध राष्ट्र समाप्त नहीं कर सका।
महाकारुणिक सिद्धार्थ गौतम के प्रचार और प्रसार- आन्दोलन  के कारण ही, उनके जीवन काल में ही आर्यों के अधर्म - (असमानता का धर्म )  चातुर्वर्ण्य ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र ) का सफाया हो गया। इसका सारा श्रेय गौतम बुद्ध को जाता है। यह विश्व की ऐसी पहली  महा क्रांति थी जो बुद्ध के पहले किसी ने नहीं की थी।
यह ऐसी क्रांति थी की भारत में सारा उल्टा -पलटा हो गया और  शुद्र राजा या देश के सत्ताधारी बन गए। और करिश्मा देखो जो ब्राह्मण थे वे भिखारी बन गए। उदहारण के लिए आप वशिष्ट और विश्वामित्र की लड़ाई का मुख्य कारण देख सकते है। वशिष्ट और बुद्ध का संवाद आप पढ़ सकते है। विश्वामित्र की  इस लड़ाई में आखरी जीत हो गई। ऐसी  ही एक जीत अशोक की हुई। ऐसी एक जीत शाश्त्रों की हुई -वेदों की ग्रंथो की हार हुई और बुद्धा के वचन त्रिपिटक और महायान ग्रन्थ बन गए। ब्राह्मण सत्ताधारी और समाज तिलमिला गया। सारी व्यवस्था बिखर गई। ब्राह्मण विद्वानों के पैरों तले की जमीन खिसक गई। बुद्ध के प्रज्ञा के सामने ब्राह्मण हार गए।
इसी प्रज्ञा में  सम्राट अशोक का जन्म हुआ।
कलिंग देश के राजा और व्यापारी लोगों ने अशोक के जहाजों को रोक के रखा था, जिसके कारण अशोक को कलिंग पर लड़ाई करनी पड़ी और इस युद्ध में जो रक्तपात हुआ वह सारा विश्व जनता है,  और उसके बाद जब ब्राह्मणों ने जो इतिहास लिखा उसमे सम्राट अशोक को चांडाल कहा है। इसी सम्राट अशोक ने ब्राह्मणों की नीव खोद डाली और भारत को बौध्यमय बना दिया। 
कहने का तात्पर्य यह की बुद्ध ने उस समय की सारी सामाजिक व्यवस्था ही बदल दी।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ' बुद्ध एंड हिज धम्म ' ग्रन्थ में लिखते है ---- तथागत ने समजाया :- " संसार में आने का उद्देश्य ही यह है कि दरिद्रो, असहायों और आरक्षितो का मित्र बनना। जो रोगी हों ---श्रमण हों व दुसरे कोई भी हों -- उनकी सेवा करना। दरिद्रों, अनाथो और बूढों की सहायता करना तथा दूसरों को ऐसी करने की प्रेरणा देना।" सम्राट अशोक ने भारत में ही नहीं सम्पूर्ण  विश्व में यह अपना मिशन-कार्य बनाया। और बुद्ध के आठ अस्थियोंको 84 हजार टुकडे सुवर्ण के डब्बियों में बंद करके सम्पूर्ण भारत में ही नहीं, विश्व के दुसरे देशों में भी उसपर स्तूप बनाये और उस स्तूप के आगे एक अशोक स्तम्भ गाढ़ दिया जिसे राजाज्ञाएं कहते हैं।
सम्राट अशोक का grandson सम्राट बृहद्रथ मौर्य की ही हत्या BC 185 में उसके ही  सेनापति पुष्यमित्र ने अपने ही गुरु पतांजलि के कहने पर की थी। उसके बाद बौद्ध राजाओं, भिक्षुओं और बौद्ध लोगोंका जो सरे आम कत्ल हुआ वह इतिहास रक्तों के पन्नों से ऐसा लथपत है जिस की मिसाल विश्व में कंही भी नहीं मिलती, और इस युद्ध में ब्राह्मणों की ऐसी जित हुई की बौद्ध धम्म अपने ही वतन भारत से दुसरे देशों में भाग गया और दो हजार वर्षों तक लौटकर नहीं आया , और  जो लोग बौद्ध थे उनको गुलाम बनाया गया, और इन गुलामों को एक नया नाम दिया गया और वो नाम था  'शुद्र ' और जो बौद्ध लोग लड़ते लड़ते जंगल में भाग गए उन्हें न - छूने का कानून बना दिया, बादमें उन बौद्ध लोगों को एक नया नाम दिया गया ' अछूत '
इस तरह बुद्ध और उसके धम्म का नामोनिशान भारत से मिट गया।
विश्व के दुसरे विकसित और समृद्ध देशों में जो आज बुद्ध धम्म दिखाई दे रहा है, वह उसका असली चेहरा नहीं है, वह उसका नकली चेहरा है, वह उसका विकृत रूप है , वह वंहा दुसरे देशों के नाले में बहकर और गन्दा हो गया है। वंहा भिक्षु शादी करते हैं और वह सब काम-कार्य करते हैं, जिसे बुद्ध ने मना किया है, या जिसे बुद्ध अधर्म कहते हैं। वंहा नैतिकता की कोई कीमत नहीं है। वंहा उन्होंने अनैतिकता को नैतिकता कहा है। हाँ एक बात मानना पड़ेगा की वंहा बुद्ध की बहुत बड़ी-बड़ी मुर्तियोंकों सोने और हीरे-जवारत से सजाया गया हैं।
जापान, कम्बोडिया, थाईलैंड, ताइवान और चीन में आज तक दूसरा बुद्ध क्यों पैदा नहीं हुआ, जो उनकी धरती पर  धर्मचक्र परिवर्तित कर सके। इसके कई कारण है। ( Read Dr. B.R. Ambedkar's Writing and Speeches published by Maharashtra Government, India.)
जो धर्मचक्र परिवर्तित करता है- घुमाता हैं उसे ही बुद्ध कहते हैं।
बोधिसत्व धर्मचक्र परिवर्तित नहीं कर सकता। धर्मचक्र परिवर्तित करने की शक्ति बोधिसत्व में नहीं होती। धर्मचक्र परिवर्तित करने की शक्ति सिर्फ बुद्ध में होती हैं। इसलिए विश्व के बोधिसत्व ने बुद्ध की बराबरी करने का अपराध नहीं करना चाहिए। ऐसा अपराध किया गया है, इसलिए मुझे यह लिखने की आवश्यकता महसूस हुई है। बोधिसत्व देंग्योदाइशी साइच्यो ( जन्म : इ. स. 767 -- निर्वाण : 4 जून 822 ) तेंदाई पंथ के संस्थापक की तुलना डॉ आंबेडकर के साथ कैसे की जा सकती है -- यह तो वह कहावत हो गई ' कंहा  राजा भोज और कंहा  गंगू तेली।' क्या देंग्योदाइशी साइच्यो ने अपने लाखों लोगों के साथ धर्मचक्र परिवर्तन किया है - जैसे डॉ आंबेडकर ने अपने दस लाख लोंगे के साथ धर्मचक्र परिवर्तन किया है ? फिर यह किसकी चाल  है जो डॉ आंबेडकर को नीचा दिखने की कोशिश कर रहा है?
गौतम बुद्ध की तुलना विश्व में सिर्फ डॉ आंबेडकर से की जा सकती है और किसीसे नहीं। या यूँ कहिये डॉ आंबेडकर की तुलना सिर्फ गौतम बुद्ध से की जा सकती है और किसीसे नहीं।
बुद्ध की तुलना बुद्ध से ही की जा सकती है। एक बुद्ध ने अपने पांच भिक्षुओं के साथ  इ.स. पूर्व  438  में धम्म चक्र घुमाया जिसने  करुणा और प्रज्ञा से संपूर्ण विश्व को प्रकाशीत, प्रज्वलित और प्रदीप्त किया। तो दुसरे बुद्ध ने
इ. स. 1956 में अपने दस लाख अनुयायीयों के साथ नागपुर में सधम्मचक्र परिवर्तित किया जिसने भारत के संविधान द्वारा विश्व  में भाईचारा - FRATERNITY का  शंखनाद किया और जिसकी आवाज विश्व की आवाज हो गई है। 
This is the history of OLD BUDDHA.
Now the NEW HISTORY of NEW BUDDHA  starts ------------------------------------------
डॉ आंबेडकर का ' Buddha and FUTURE of HIS DHAMMA ' नामक लेख ' महाबोधि सोसायटी, कलकत्ता ' की मासिक पत्रिका में मई 1950  में प्रकाशित हुआ था। जिसमें लिखा है :- " एक प्रश्न है जिसका उत्तर प्रत्येक धर्म को देना चाहिए। शोषितों और पैरों तले कुचलों के लिए वह किस तरह की मानसिक और नैतिक राहत पंहुचता हैं? यदि वह ऐसा नहीं कर सकता हो तो उसका अंत ही होगा। क्या हिन्दू धर्म पिछड़ें वर्गों, अछूत जाती  और जन -जातियों के करोंडों लोगों को कोई मानसिक और नैतिक राहत पंहुचता है?  निश्चित नहीं। क्या हिन्दू इन पिछड़े वर्गों, अछूत जाती और जन -जातियों से यह आशा रख सकते हैं कि बगैर किसी मानसिक और नैतिक राहत की उम्मीद किए वे हिन्दू धर्म को चिपके रहेंगे? इस तरह की आशा रखना सर्वथा व्यर्थ होगा। हिन्दू धर्म ज्वालामुखी पर सवार हुआ है। आज यह ज्वालामुखी बुझा हुआ नजर आता है। लेकिन सत्य यह है की यह बुझा हुआ नहीं है। एक बार पिछड़ें वर्ग, अछूत जाती और जन -जातियां का यह करोंड़ों का शक्तिशाली समूह अपने पतन के बारें में सचेत हो जाएगा और यह समझ जाएगा कि अधिकतर हिन्दू धर्म के सामाजिक दर्शन के कारण ही ऐसा हुआ है, तब यह ज्वालामुखी फिर से फट जायेगा। रोमन साम्राज्य में फैले मुर्तिपुजन को  ईसाई धर्म द्वारा बहार फेक दिए जाने की बात यंहा याद आती है। जैसे ही लोंगोंको यह एहसास हुआ कि मुर्तिपुजन से उन्हें किसी तरह की मानसिक और नैतिक राहत मिलनेवाली नहीं है, तो उन्होंने उसका त्याग किया और ईसाई धर्म को अपनाया। जो रोम में हुआ वही भारत में जरुर होगा, हिन्दू लोगों को समझ आनेपर वे निश्चय ही बौद्ध धम्म की ओर ही मुड़ेंगे। " डॉ आंबेडकर की यह चेतावनी और भविश्यवाणी 1956 में सच हुई।
महामैत्रेय आंबेडकर सम्बुद्ध ने इसी उपरोक्त लेख में कहा :- " और यह ध्यान रहे कि यह नया जगत पुराने जगत से सर्वथा भिन्न है।" इसका यह आशय है की गौतम बुद्ध का जगत पुराना है - क्योंकि बुद्ध के ज़माने में सिर्फ चार ही जातियां थी:- (१) ब्राहमण, (२) क्षत्रिय, (३) वैश्य और (४) शुद्र।  और तिन धर्म थे -
(१) आर्य-वेद  धर्म (२) जैन धर्म और (३) बौद्ध धम्म। और ब्राह्मणी - दर्शन के अतिरिक्त कोई बासठ दार्शनिक मत थे और ये सभी ब्राह्मणी - दर्शन के विरोधी थे।
लेकिन डॉ आंबेडकर के ज़माने में चार हजार जातियां है। आर्य-वेद धर्म, जैन धर्म और गौतम बुद्ध के बाद चार  मुख्य धर्म उत्पन्न हुए :- (१) ब्राहमण- मनुस्मृति धर्म, (२) ख्रिश्चन रिलिजन   (३) इस्लाम मजहब और (४) क्यम्युनिजम। और हजारों अनेक अलग अलग पंथ है।
सम्राट अशोक का एक अखंड संपूर्ण बौद्ध भारत का इ.स. पूर्व 185 के बाद 627 राजा और महाराजाओं के  विभिन्न राज्यों में इ.स. 1950 तक  विभाजन हुआ।
ब्रिटिश सम्राट के समक्ष, लंडन के गोलमेज सम्मेलन में अध्यक्ष ने कहा :- " डॉ आंबेडकर, क्या आप इसे संविधान में लिखेंगे ? "( बाबासाहेब डॉ आंबेडकर सम्पूर्ण वाड्मय - खंड 5, पृष्ठ 147 -भारत सरकार प्रकाशन )
खंड 5, पृ ष्ठ 153 पर डॉ आंबेडकर ने कहा :--" -- तब संघीय संविधान कार्यान्वित करने का हमारा उद्देश्य पूरा हो जाता है। यह राजा - महाराजाओं की स्वंतंत्रता के अनुरूप रहेगा कि वे संघ में शामिल होना चाहते हैं या नहीं। "
मेरे कहने का अर्थ है ' भारत का संविधान ' लिखने का अधिकार डॉ आंबेडकर को  ब्रिटिश सरकार और गोलमेज परिषद् के छब्बीसवी बैठक -- 21 सितम्बर 1931 में ही दे दिया था। 
(१) डॉ आंबेडकर ने संघीय संविधान द्वारा भारत को 26 नवम्बर,1950 में सम्राट अशोक को उसका भारत भेंट  कर दिया।
(२) डॉ आंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 में  भारत को बौद्धमय करके सिद्धार्थ गौतम बुद्ध को उसका भारत वापस कर दिया।
डॉ आंबेडकर ने यह (१) और (२) प्रमुख कार्य करके भारत को पुनर्जीवित करके, भारत का इ.स. पुर्व का सुवर्ण काल, गौरान्वित काल लोटा दिया।
क्या ऐसा कार्य करने की महान शक्ति किसी भारतीय में थी, है, या रहेगी ?

  
  
              

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